चंडीगढ़, 13 जनवरी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री, कांग्रेस कार्य समिति की सदस्य और उत्तराखंड की प्रभारी कुमारी सैलजा ने कहा कि भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार प्रदेश के सरकारी विश्वविद्यालयों में तैनात अस्थाई असिस्टेंट प्रोफेसर को हटाने की प्लानिंग में जुट गई है। ऐसा होने पर इन विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हजारों छात्रों के भविष्य पर खतरा मंडराने लग जाएगा। इनकी पढ़ाई बाधित हुए बिना नहीं रह पाएगी। प्रदेश सरकार को चाहिए कि इन पदों को भरा हुआ मानते हुए खाली पड़े पदों पर भर्ती प्रक्रिया को चलाए।
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार उच्च शिक्षित युवाओं को सरकारी कॉलेज, विश्वविद्यालय में स्थाई नौकरी देने में पहले ही नाकाम रही है। इनमें खाली पड़े पदों की संख्या से पता चलता है कि सरकार इस दिशा में गंभीर नहीं है। सरकार को लगता है कि इन पदों को भरने से उसका खर्च बढ़ जाएगा, लेकिन यह आज तक नजर नहीं आया कि खाली पड़े पदों के कारण कितने ही छात्रों की पढ़ाई व रिसर्च संबंधी अन्य कार्य बाधित हो रहे हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि फिलहाल प्रदेश के 15 सरकारी विश्वविद्यालयों में 1013 असिस्टेंट प्रोफेसर अस्थाई आधार पर सेवाएं दे रहे हैं। ये छात्रों को उच्च शिक्षित करने में योगदान देने की मिलने वाले अपेक्षाकृत कम वेतन से अपने परिवार का पालन-पोषण भी कर रहे हैं। लेकिन, सरकार की मंशा अब इनको हटाने की है। गठबंधन सरकार चाहती है कि वह इन्हें बाहर का रास्ता दिखाने के बाद खाली होने वाली सीटों पर अपने चहेतों को बैठा दे।
कुमारी सैलजा ने कहा कि इससे पहले एडेड कॉलेजों में टीचिंग व नॉन टीचिंग स्टाफ की भर्तियों पर प्रदेश सरकार की ओर से प्रतिबंध लगाया जा चुका है। जबकि, सरकारी कॉलेजों में पहले से ही 60 प्रतिशत तक पद खाली पड़े हैं। प्रदेश में साल 2019 में सिर्फ 524 पदों पर कुछ ही विषयों में आखिरी बार सहायक प्रोफेसर की भर्ती की गई थी। आधे से अधिक विषय ऐसे बचे हैं, जिनकी वैकेंसी 2016 के बाद से ही नहीं आई हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकारी कॉलेजों में सहायक प्रोफेसर के 8137 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 4738 पद रिक्त हैं। निदेशक उच्चतर शिक्षा ने 1535 रिक्त पदों को भरने के लिए 02 सितंबर 2022 को आग्रह पत्र एचपीएससी को भेजा, लेकिन यूजीसी की गाइडलाइन में संशोधन का हवाला देकर भर्ती को वापिस मंगा लिया। एक साल बीतने के बाद भी उक्त नियमों में संशोधन की प्रक्रिया को विभाग पूरा नहीं कर पाया है। इससे साफ है कि खाली पड़े पदों को भरने को लेकर राज्य सरकार गंभीर नहीं है। इसके विपरीत जो पद पहले से भरे हैं, उन्हें भी खाली करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है।