चंडीगढ़, 9 दिसंबर। पंजाब विजिलेंस ब्यूरो ने पंजाब स्टेट फार्मेसी कौंसिल (पी.एस.पी.सी.) में बड़े घोटाले का पर्दाफाश करते हुए दो पूर्व रजिस्ट्रार और एक सुपरिटेंडेंट को कथित तौर पर निजी फार्मेसी संस्थाओं के सहयोग से उम्मीदवारों की रजिस्ट्रेशन करने और फार्मासिस्टों को सर्टिफिकेट जारी करने के आरोप में गिरफ्तार किया है।ब्यूरो के प्रवक्ता ने बताया कि मामले की जांच के बाद उक्त गिरफ्तारी हुई। आरोपियों में प्रवीन कुमार भारद्वाज और डॉ. तेजबीर सिंह (दोनों पूर्व रजिस्ट्रार), और अशोक कुमार लेखाकार (मौजूदा सुपरिटेंडेंट) शामिल हैं।
प्रवक्ता के अनुसार प्रवीन कुमार भारद्वाज ने 2001 से 2009 और 2013 से 2015 तक पी.एस.पी.सी. के रजिस्ट्रार के तौर पर सेवाएं दी थीं। जबकि डॉ. तेजबीर सिंह 2013 से 2013 तक इस पद पर रहे। जांच में लेखाकार अशोक कुमार भी इस घोटाले में शामिल पाया गया।
जांच के दौरान फार्मासिस्टों की रजिस्ट्रेशन के दौरान सत्यापन प्रक्रिया में लापरवाही का पता लगा है। इसके अलावा सामान्य निरीक्षण के दौरान कई नकली डी-फार्मेसी सर्टीफिकेटों का भी पता लगा है। इस जांच के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि पंजाब के 105 फार्मेसी कॉलेजों में चल रहे डी-फार्मेसी कोर्स के लिए दाखिला प्रक्रिया के दौरान उक्त दोनों रजिस्ट्रार और कर्मचारियों ने प्रोटोकॉल और अनिवार्य शैक्षिक योग्यताओं की अनदेखी की।उल्लेखनीय है कि पंजाब राज्य तकनीकी शिक्षा बोर्ड, जो राज्य के सरकारी कॉलेजों में डी-फार्मेसी कोर्स के दाखिलों की ऑनलाइन काउंसलिंग करवाता है, उस काउंसलिंग के दौरान प्राइवेट संस्थानों में खाली सीटें रह जाती हैं। इन सीटों को भरने के लिए प्राइवेट कॉलेजों ने कथित तौर पर उक्त रजिस्ट्रारों और पी.एस.पी.सी. के कर्मचारियों की मिलीभगत से अन्य राज्यों के विद्यार्थियों को अनिवार्य माइग्रेशन सर्टिफिकेट प्राप्त किए बिना, इन उम्मीदवारों से बड़ी रिश्वत लेकर कथित तौर पर दाखिला दिया। इसके अलावा, प्राइवेट तौर पर मेडिकल या नॉन-मेडिकल स्ट्रीमों में 10+2 करने वाले कई छात्रों को भी अपेक्षित 10+2 शैक्षिक योग्यताओं के साथ डी-फार्मेसी कोर्स में दाखिला दिया गया, जबकि योग्यता के अनुसार 10+2 रेगुलर तौर पर और साइंस के प्रैक्टिकल में भाग लेकर पास की होनी चाहिए।
जांच के दौरान यह बात भी सामने आई है कि काउंसिल के अधिकारियों और कर्मचारियों ने रिश्वत के बदले निजी फार्मेसी कॉलेजों के साथ मिलीभगत करके बिना अनिवार्य माइग्रेशन सर्टिफिकेट और 10+2 सर्टिफिकेट के सत्यापन किए बिना दाखिलों की इजाजत दी। इसके अलावा, भारत में काउंसिल ऑफ बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन (सी.ओ.बी.एस.ई.) द्वारा मान्यता प्राप्त शिक्षा बोर्डों द्वारा जारी सर्टिफिकेट की मंजूरी और रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया के सम्बन्ध में अनियमितताएं सामने आई हैं। पी.एस.पी.सी. के अधिकारियों और कर्मचारियों ने प्राइवेट कॉलेजों के प्रिंसिपल और प्रबंधकों की मिलीभगत के साथ इन उम्मीदवारों की रजिस्ट्रेशन करवा कर सर्टिफिकेट जारी किये और ऐसे नकली सर्टिफिकेट के आधार पर उनको अलग-अलग विभागों में नौकरी मिली या मेडिकल की दुकानें स्थापित करने में मदद की।
उन्होंने बताया कि आरोपी प्रवीन कुमार भारद्वाज को 31.3.2011 को फर्जी दाखिले, नकली सर्टिफिकेट, रिकॉर्ड में हेराफेरी और डिस्पैच रजिस्टर में गलतियों के दोष में निलंबित कर दिया गया था। हालांकि, बाद में उनको 2013 को रजिस्ट्रार के तौर पर दोबारा नियुक्त कर दिया था, परन्तु 2015 में हाईकोर्ट की रिट पिटिशन के कारण उसकी सेवाओं को खत्म कर दिया गया था।
प्रवक्ता ने आगे बताया कि डायरेक्टर, चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान (डी.आर.एम.ई.), और अमृतसर, फरीदकोट और पटियाला के मेडिकल कॉलेजों द्वारा किए गए सत्यापन के दौरान दाखिलों और पी.एस.पी.सी. की रजिस्ट्रेशन प्रक्रियाओं में काफ़ी अनियमितताओं का पता लगा। अमृतसर और फरीदकोट के कॉलेजों की रिपोर्ट ने पी.एस.पी.सी. में दाखिलों और रजिस्ट्रेशन में हेराफेरी का खुलासा किया है।
जांच के दौरान 2005 से 2022 के दरमियान 143 छात्रों के नकली सर्टिफिकेट का पर्दाफाश हुआ है। इन विद्यार्थियों ने पंजाब तकनीकी शिक्षा बोर्ड के अधिकारियों/कर्मचारियों के साथ अपने संबंधों का फायदा उठाते हुए प्राइवेट कॉलेजों में डी-फार्मेसी के डिप्लोमा मुकम्मल किए।
पी.एस.पी.सी. को 2016 से 2023 तक सत्यापन रिपोर्ट पर टिप्पणियों की विनती करने सम्बन्धी कई पत्र भेजे गए, परन्तु इसके बावजूद पी.एस.पी.सी. लंबित जांच का हवाला देते हुए ज़रूरी टिप्पणियाँ देने में असफल रहा। इसके अलावा, प्रदान की गई सूचियों की अनुपस्थिति के कारण कुछ जिलों की रिपोर्ट की पुष्टि करने में सरकारी मेडिकल कॉलेज पटियाला की भूमिका भी अस्पष्ट रही है। कुल 3078 सत्यापनों में से, पी.एस.पी.सी. ने पहचाने गए फज़ऱ्ी दस्तावेज़ों के बारे में कोई जानकारी दिए बिना केवल 453 फार्मासिस्टों के बारे में टिप्पणियाँ दी हैं।
इसके अलावा, बाहर के राज्यों के शिक्षा बोर्डों से 10+2 करने के बावजूद पंजाब राज्य तकनीकी शिक्षा बोर्ड और प्राइवेट कॉलेजों से डिप्लोमा पूरा करने के उपरांत डी-फार्मेसी सर्टिफिकेट प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों संबंधी भी अनियमितताओं का पता लगा, जो पी.एस.पी.सी. द्वारा सत्यापित और रजिस्ट्रेशन के मौके पर की गई गलतियों को दिखाता है।
उन्होंने बताया कि रजिस्ट्रार के तौर पर डॉ. अभिन्दर सिंह थिंद, डॉ. तेजबीर सिंह और प्रवीण कुमार भारद्वाज की मिलीभगत के कारण बहुत से नकली फार्मेसी सर्टिफिकेट जारी किये गए, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को खतरे में डाला गया।
राज्य के पांच जोन ने अनियमितताओं को उजागर करते हुए डी.आर.एम.ई. को सत्यापित रिपोर्ट सौंपी। हालांकि, फरीदकोट के अलावा पी.एस.पी.सी. की रिपोर्ट अभी भी लंबित है, जिस कारण रिपोर्ट में इन अनियमितताओं के बारे में स्पष्ट फ़ैसला सामने नहीं आया।
फार्मेसी कौंसिल ऑफ इंडिया (पी.सी.आई.), नई दिल्ली के एक पत्र में, फार्मासिस्ट रजिस्ट्रेशन के लिए हरेक आवेदन की पड़ताल करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया हुआ है, जिसमें शैक्षिक प्रमाण पत्रों के सत्यापन और फार्मेसी एक्ट 1948 के अंतर्गत कानूनी शर्तों की पालना करना शामिल है, परन्तु पी.एस.पी.सी. रजिस्ट्रार और कर्मचारियों ने इन अनिवार्य शर्तों को बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया। इसके अलावा, यह पता लगा कि प्रवीन कुमार भारद्वाज ने समकालीन समय के रजिस्ट्रार का पद न होने के बावजूद कथित तौर पर हिमाचल स्टेट फार्मेसी कौंसिल के विद्यार्थियों के लिए दो फार्मेसी सर्टिफिकेट पर दस्तखत किये थे।उपरोक्त अनियमितताओं को ध्यान में रखते हुए उक्त के खिलाफ एफ.आई.आर. 17 तारीख 8.12.23 को आई.पी.सी. की धारा 420, 465, 466, 468, 471, 120-बी के अंतर्गत विजिलेंस ब्यूरो के थाना आर्थिक अपराध शाखा लुधियाना में मुकदमा दर्ज किया गया है। उन्होंने बताया कि विजिलेंस ब्यूरो द्वारा और अधिक पड़ताल के दौरान पी.एस.पी.सी. के और अधिकारियों, कर्मचारियों और क्लर्कों के साथ-साथ प्राइवेट कॉलेजों के साथ जुड़े व्यक्तियों की भूमिकाओं की भी जांच की जायेगी।